लेखनी प्रतियोगिता -27-Oct-2022 दाना चुगते पंछी
शीर्षक = दाना चुगते पंछी
रविवार का दिन था । सुबह के 11 बजे थे , दरवाज़े पर एक दस्तक होती है । सावित्री जी, जो की रसोई में खड़ी बर्तन धो रही थी, दरवाज़े पर हुयी दस्तक सुन रसोई से बाहर आकर दरवाज़ा खोलती ।
दरवाज़े पर खड़े शख्स को देख कर उनके चेहरे पर एक मुस्कान लाते हुए कहा " अरे! अमन तुम, बाहर क्यू खड़े हो अंदर आओ? "
"नमस्ते आंटी ! आंटी शोभित घर पर है क्या? " सामने खड़े अमन ने पूछा
अपने बेटे शोभित का नाम सुन कर, सामने खड़ी सावित्री जी के चेहरे पर एक उदासी आ गयी और बोली " नही मालूम बेटा की वो कहा गया है? थोड़ी देर पहले घर पर ही था नाश्ता भी ठीक तरह से नही किया पहले तो रविवार के दिन सुबह से ही अपना पसंदीदा नाश्ता बनवाता और पेट भर कर खाता ।
लेकिन आज वो बहुत उदास था , उसके पिता की अचानक मृत्यु ने उसे उदास कर दिया है , कहने को तो उसके पिता का जाने का गम हम सब को है , उसकी बहने भी ठीक तरह से न तो खा रही है और न ही सौ रही है ,
मैं भी पिछले एक महीने से ढंग से नही सोई हूँ, रोना चाहती हूँ पर रो भी नही सकती अगर मैं ही टूट गयी तो इन तीनो बच्चों को कौन संभालेगा ।
अच्छा हुआ अमन बेटा तू आ गया , जरा देखना की शोभित कहा गया है? मुझे तो उसकी उदासी काटने को दौड़ रही है , मुझे लग रहा है की उसके पिता का इस तरह उसकी जिंदगी से दूर चले जाना, उसे कही कुछ गलत करने पर अमादा न करदे । सावित्री जी आँखों में आंसू लिए कुछ और कहती तब ही अमन बोल पड़ा
आंटी अंकल के जाने का दुख आपके साथ साथ मुझे भी बहुत है , उन्होंने मुझे भी कभी शोभित का दोस्त नही बल्कि उसका भाई और अपने बेटे की तरह समझा ।
लेकिन अब क्या कर सकते है , ईश्वर ने उनकी उम्र शायद इतनी ही लिखी थी। आप परेशान न हो आंटी , मैं अभी शोभित को ढूंढ कर लाता हूँ, मैं जानता हूँ वो कहा गया होगा, आप चिंता न करें मैं उसके साथ हूँ और उसे इस मुश्किल घड़ी में कभी अकेला नही छोडूंगा
"शुक्रिया बेटा! एक अच्छा और सच्चा दोस्त ही दोस्त के दिल का हाल समझ सकता है , ईश्वर तुम्हे हमेशा खुश रखे मेरे बेटे" सावित्री जी ने सामने खड़े अमन को आशीर्वाद देते हुए कहा
अमन सावित्री जी की तरफ एक प्यारी सी मुस्कान अपने चेहरे पर सजा कर देखता और वहाँ से चला जाता अपने दोस्त शोभित के पास।
शोभित जो की हाईवे के पास बने एक पार्क में बैठा था , जो की उसके घर से कुछ दूरी पर था , दोपहर का समय था इसलिए वहाँ ज्यादा लोग नही थे , इसलिए शोभित वहाँ आकर बैठ गया , उसकी आँखों में आंसू थे , उसे अपने पिता की बहुत याद आ रही थी , वो खुद को बहुत अकेला समझ रहा था अपने पिता के अचानक यूं इस तरह उसकी जिंदगी से चले जाने के बाद।
शोभित , इस कदर अपने पिता की यादों में खो गया था , कि उसे पता ही नही चला की कब अमन उसका दोस्त वहाँ आन पंहुचा, जब उसने अपने कांधे पर एक स्पर्श महसूस किया और अपनी गर्दन पीछे मोड़ कर देखा तो सामने अमन खड़ा था
उसे देख कर उसकी ज़ुबान पर एक ही सवाल आया " तू कब आया? "
अमन ने एक धीमी मुस्कान अपने चेहरे पर लाते हुए कहा " बस अभी अभी ही आया हूँ, जब तू यहाँ बैठा न जाने कौन सी ख्यालों की दुनिया में खोया हुआ था , तेरे घर पर गया था, तब आंटी ने बताया की तू न जाने कहा गायब है नाश्ता करने के बाद
मैं जानता था , तू यही मिलेगा इसलिए बिना समय गवाए इधर ही आ गया , और देखो मेरा अनुमान सही था , तू यही मिला मुझे , तुझे मुझसे बेहतर कोई नही जान सकता ।
अब बता ऐसी भी क्या बात है? , जो तू इतना उदास हुआ यहाँ बैठा है "
कुर्सी पर बैठे शोभित ने उसकी तरफ देखा और धीमे स्वर में बोला " भाई तू मेरे इस तरह उदास और खामोश रहने की वजह जानता तो है। तू तो हर चीज से वाकिफ है , जो कुछ भी पिछले एक महीने में मेरे और मेरे परिवार वालो के साथ हुआ।
पापा का यूं इस तरह अचानक हम सब की जिंदगी से इतनी दूर चले जाना जहाँ से वो कभी वापस भी नही आ सकते ।
हमारे घर की सारी खुशियाँ पल भर में इस तरह हम से रूठ जाएंगी मैने सोचा नही था ।
कल की ही बात लगती है , ज़ब मैं दफ्तर से आता और घर पर पापा को न देखता तो चिंता हो जाती की इतनी देर हो गयी पापा अभी तक घर क्यू नही आये है, ऑफिस से, कही उन्हें कुछ हो तो नही गया
और उन्हें तुरंत फ़ोन लगा कर पूछता , उनकी एक आवाज़ मेरे अंदर एक उम्मीद सी जगा देती, और ज़ब तक वो घर न आ जाते मैं यूं ही दरवाज़े की और देखता रहता ।
जब तक पापा हमारे साथ थे , हमें कोई भी परेशानी नही थी , मुझे भी कभी दाल आटे का भाव जानने की ज़रूरत नही पड़ी, जो सैलरी आती थोड़ी घर पर देता और बाकी अपने ऊपर खर्च कर देता।
लेकिन अब सबसे ज्यादा चिंता मुझे इस बात की है , कि आखिर मेरी इतनी सी तनख्वाह में हम चार लोगो का गुज़ारा कैसे होगा।
माँ कि दवाई , बहनों कि पढ़ाई उसके बाद शादी , बिजली का बिल, घर का राशन सब कुछ कैसे होगा, पापा कि पेंशन आने में भी अभी समय लगेगा
और मुझे भी अभी नौकरी करते हुए दो साल ही हुए है , अभी तो प्रमोशन कि भी कोई उम्मीद नही और न ही तनख्वाह बढ़ने कि
मुझे नही लगता , कि मैं कैसे अपने आप को और अपने परिवार की इस डूबती नाव को कैसे साहिल तक ले जाऊंगा, कही मैं टूट न जाऊ बस यही चिंता मुझे सता रही है, मेरे दोस्त सच कहते है दुनिया वाले पिता से ज्यादा बड़ा साया अपनी औलाद पर कुछ हो ही नही सकता , वो आपको कुछ पता लगने ही नही देता की कब क्या हो रहा है और कब किस चीज की ज़रुरत है । "
शोभित की आँखे नम थी , उसे इस तरह टूटता देख अमन ने अपने सीने से लगाया और उसकी कमर को थप थापाते हुए बोला " सब ठीक हो जाएगा, ईश्वर पर भरोसा रख, देखना वो सब ठीक कर देगा "
"कैसे, आखिर कैसे। अगर उसे सब ठीक करना होता तो वो हमें इस तरह परेशान क्यू करता? हम से हमारे पिता को क्यू छीनता? " शोभित ने कहा रोते हुए
अमन ने अपनी जेब से रुमाल निकाला और उसके आंसू साफ करते हुए बोला " ऐसे नही कहते है , ईश्वर अपने नेक बन्दों का समय समय पर इम्तिहान लेते है, सिर्फ और सिर्फ ये देखने के लिए की वो इस मुश्किल घड़ी में भी उसे ही याद करेगा या फिर उसका उस पर से भरोसा उठ जाएगा, ज़ब भी मनुष्य दुख और परेशानियों में घिरा होता है और सिर्फ और सिर्फ ईश्वर को ही पुकारता है, उस पर भरोसा करता है की एक न एक दिन सब ठीक हो जाएगा, तब ईश्वर उसकी मदद अवश्य करते है , और ऐसी जगह से उसके लिए मदद भेजते है जहाँ से उसे उम्मीद भी नही होती है "
शोभित, अमन की बात सुन कुछ और कहता तब ही कुछ ऐसा हुआ, जिसने अमन और शोभित का ध्यान अपनी तरफ खींच लिया।
एक आवाज़ जो बहुत तेजो की थी उन दोनों के कानो में पड़ी
वही पास में लगे एक दरख़्त पर बैठे पंछी ज़ोर ज़ोर से आवाज़ करने लगे , उनकी आवाज़ से चारो और बिखरी ख़ामोशी दूर हो गयी थी।
उनकी आवज़ो से लग रहा था , मानो वो भूखे हो
अमन और शोभित उन्हें देख रहे थे, पल भर के लिए शोभित भूल बैठा था की वो अमन के साथ क्या बातें कर रहा था ।
वो उस दरख़्त पर बैठे पंछियो को देख ही रहे थे , और सोच रहे थे कि आखिर ये परिंदे क्यू इस तरह चीख रहे है।
इससे पहले वो कुछ समझ पाते तब ही सड़क पर जा रहे एक अनाज से भरे ट्रक में से एक बोरी जिसमे से अनाज बिखर रहा था और सड़क पर गिर रहा था ,
थोड़ी ही देर में बहुत सारा अनाज सड़क पर गिर गया और वो गाड़ी आगे निकल गयी, दरख़्त पर बैठे सब ही परिंदे वहाँ से उड़ कर सड़क पर गिरे उन अनाज के दानो को चुगने लगे , थोड़ी ही देर में उन्होंने अनाज का एक एक दाना चुग लिया और वापस उसी दरख़्त पर आन बैठे , इस बार वहाँ शांति थी , उनकी आवाज़े नही निकल रही थी , शायद वो भूखे थे और अब उनका पेट भर चुका था ।
कुर्सी पर बैठे अमन और शोभित उन्हें इस तरह दाना चुगने के बाद ख़ामोशी से उस दरख़्त पर आन कर बैठने पर बहुत आश्चर्य में थे ।
शोभित तो कुछ समझ नही पाया लेकिन अमन सब समझ गया और शोभित से कहा " देखा तुमने, अभी जो कुछ हुआ, कौन जानता था कि वो दरख़्त पर बैठे पंछी भूखे है , उन्हें भूख लगी है और वो अपने भूखे होने कि गुहार अपने ईश्वर से कर रहे थे ।
वो सड़क पर जा रही गाड़ी से अनाज का गिरना फिर उन दानो को खा कर अपनी भूख मिटाना इस बात की और इशारा करता है , कि अगर हम लोग अपनी भरपूर कोशिश करें और ईश्वर में आस्था और उम्मीद रखे तो वो ठीक उसी तरह हमारी मदद करेगा जिस तरह अभी उसने दरख़्त पर बैठे पंछियो की की,
वो तो बेज़ुबान है , बोल भी नही सकते लेकिन फिर भी ईश्वर ने उनकी गुहार सुन ली, तुम और हम तो फिर भी इंसान है , तो क्या वो हमारी नही सुनेगा।
मेरे भाई जिंदगी में परेशानियां तो आती ही रहती है , बस हमें उन परेशानियों से बिना घबराये, अपने ईश्वर पर भरोसा करके, हमेशा अच्छी कोशिश करते रहना चाहिए बाकी सब ईश्वर पर छोड़ देना चाहिए ।
परिंदो को भी रिज़्क़ उनके घोसलों में नही मिलता, वो भी सुबह से शाम तक कोशिश करते है और ईश्वर से फरियाद करते है और शाम को भरा पेट लेकर अपने घोसलों में जाते है
मेरे भाई , तू भी उदास मत हो ये वक़्त भी चला जाएगा बस तू बिना टूटे , बिना हिम्मत हारे बस कोशिश करता रह, बाकी सब ईश्वर पर छोड़ दे फिर देख वो कैसे तेरी मदद करता है , तुझे इस भवसागर से निकालने में
अमन की कही बात, और अपनी आँखों देखी पंछियो के दाना चुगने वाली बात सुन शोभित को बहुत हौसला मिला, अब उसके चेहरे पर एक मुस्कान थी और वो अपने दोस्त का शुक्रिया अदा कर उसके साथ चला गया।
कुछ दिन बाद उसके पिता की पैंशन आने लगी , साथ ही साथ उन लोगो ने छत पर बना घर किराय पर उठा दिया।
उसकी बड़ी बहन जो की पढ़ाई के साथ बच्चों को पढ़ाने भी लगी जिसमे उसका साथ उसकी छोटी बहन भी देती।
शोभित की काम के प्रति लगन और काबलियत को देखते हुए, उसके नए बॉस ने उसका प्रमोशन कर दिया जिससे उसकी सैलरी पहले से दोगुनी हो गयी ।
धीरे धीरे हालात अच्छे होने लगे , और कुछ दिन बाद उसकी बड़ी बहन के लिए एक अच्छे घर से रिश्ता आया और उसकी शादी हो गयी ।
छोटी बहन अभी पढ़ाई कर रही थी और उसे अध्यापिका बनना था .
समय के साथ साथ शोभित की जिंदगी में सब कुछ ठीक हो गया था , उसकी फरियाद भी ईश्वर ने सुन ली थी ठीक उसी तरह जिस तरह उन परिंदो की सुनी थी और उनका पेट किस तरह गाड़ी से अनाज के दाने गिराकर भर दिया था ।
पिता की कमी तो उसे हर दम खलती ही रहेगी , ज़ब भी वो अकेला होता है तो अपने पिता को अवश्य याद करता है , और अपने उस ख़राब समय को भी जहाँ से ईश्वर ने उसे बाहर निकाल दिया था
प्रतियोगिता हेतु लिखी कहानी
Alka jain
13-Nov-2022 10:41 AM
Nice 👍🏼
Reply
Abhinav ji
28-Oct-2022 09:39 AM
Very nice
Reply
Rakesh rakesh
28-Oct-2022 12:42 AM
कहानी अच्छी थी।
Reply